जाको प्रिय न राम वैदेही तजिए ताहि कोटि वैरी सम जद्दपि परम सनेही।।
कितने भी बड़े आचार्य हों मठाधीश हों, रामकाज में असंतोष प्रकट कर रहे हैं, अप्रसन्न हो रहे हैं तो पूरी तरह त्याग देने योग्य हैं। ऐसे लोगों के प्रति स्वप्न में भी आदर भाव नहीं होना चाहिए।
जय श्री सीताराम जी