मेरे महादेव!❣️ये 'शिवरंजनी' आत्मा अहेरी सा शब्दों के प्राण लीन के गद्य-पद्य का प्रपंच रचता है। हे नाथ! आप ही हो-मेरी गीतिका के स्वामी, प्रणेता, प्रसूता। संपूर्ण काव्यशास्त्र, व्याकरण आपकी जटाओं से प्रवाहित सुरसरिता है और मैं नचिकेता सा इसके त्रिवेणी संगम में संतृप्त पिपासू बालक🙌
A phenomenon that thrilled your eyes every time when any passionate human see this...😍😍😍❤❤❤. May this magical performance always guide, inspire, motivate humanity till eternity... 🌈🌈🌈 Such a stunning act of perfection whose charisma, charm naver fade
@nadiacomaneci10
🙏
सुनो! मैं तुम्हारी हथेली में संजोया मुठ्ठी भर चावल हूँ.... जिसे तुमने अँजुरी भर भर, छटाँक दिया है, अपनी विदाई के दरमियान... संभवत मेरा संयोग, मेरा वियोग, च���गा है चिरैया का.... शायद मैं तुम्हारे दलान, चौखट पे कतरन कतरन, तितर-बितर हुआ हूँ.... थोड़ा थोड़ा पृथ्वी जैसा हुआ हूँ मैं 💘
मैं पृथ्वी के उस टाईम जोन में बसता हूँ
जहाँ अक्षांश, देशांतर रेखाएँ अतिव्यापी हैं
सुनो! यहाँ रतजगों का पर्याय है- वसन्त ऋतु
पतझड़ इंगित है तुम्हारी पाजेब-झनकार में
सचमुच मैंने देखा है तुम्हीं हो लहराता समुद्र
तुम्हारी माथे की बिंदिया है सूरज-चाँद
अंततः पंक्ति की परिणति
#Gunjan
💖
सुनो! मेरी आँखों की कठपुतलियाँ महज़ इक आईना नहीं.... बल्कि धधकता हुआ ज्वालामुखी है.... जिसमें दिसम्बर की विदाई, अलाव के मानिंद... धुआँ धुआँ करके, भस्माविभूत होती है.... सचमुच, प्रिय! तुम्हारी इश्क़-परस्ती की बदौलत नसीब है ये मेयार... चश्म-ए-तर होके भी मुस्कुरा के अलविदा कहना...❤
कोहरे के क्रोशिए पे, बुनता है सूरज
जाड़े की सुबह, गुनगुनी धूप की हथेली पे
खिड़कियों के कांच पे तुम्हारी धुंधली यादों का सतरंगी दुशाला...
मानो ये अगहन जानती है उस ऊन का रंग
जिसको तुमने मेरी हृदय के चरखे पे
धड़कनों के तकुआ पे संजो के,
कतरन कतरन, रों रों कात्ता था- पूस की बयार में
प्रिय!
तुम्हारी स्मृतियों में
मैं पृथ्वी को हूबहू निहारता हूँ...
जैसे, अनिमेष-एकटक देखता है
स्वातिप्रिया नभनीरप
आकाश में उमड़ते मेह...
भूख में बिलखता,
दुधमुँहा शिशु ताकता है
अमृतधारा में सिरमौर वक्षस्थल...
भाषा के जंगल में
लिपि पगडंडियों पे चहलकदमी करता
आकुल कवि ह्रदय!
~शिव
माटी पे छाती के बल लेटता हूँ
तो उभर आती है मेरी पसलियों का प्रतिबिंब
पृथ्वी भलीभाँति परिचित है
मेरे संघर्ष औ' ईमानदारी की दास्ताँ से,
संभवतः जो मनुष्य ख़ुद्दारी में जीता है
उसकी देह पे मोटी चर्बी नहीं आती,
जो सुब्ह-ओ-शाम ख़ून पसीना बहाता है
वो मेहनतकश चलवे नहीं चाटता है!
~ शिव
सुनो! तुम्हारे शहर की हवाएँ
गोया वसन्त का यौवनागमन है...
और तुम्हारे शहर में बसर करना
मानो मधुमास की प्राप्ति है....
सचमुच, तुम्हारे शहर की पगडंडियाँ
स्वर्ग के बाग़ीचे में झरता प्रेम-पारिजात है...
कितनी पारलौकिक अनुभूति है-
प्रिय! तुम, तुम्हारा शहर और वसन्त...
~शिव
#गुँजन💖
दु:ख मेरी छाती से चिपका दुधमुँहा शिशु है, जो अनायास मेरे सीने में आके लगता है... जिसके छुअन से मेरा हृदय वात्सल्य-रस में परिपूर्ण होता है... गोया ये हूबहू महर्षि भृगु के आवेश में आके, श्री हरिनारायण के वक्षस्थल पे पाँव की चोट से उभरे पदचिह्न सा है... जो मुझे सहर्ष स्वीकार्य है!❤
कल और आएंगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहने वाले तुमसे बेहतर सुनने वाले
कल कोई मुझको याद करे
क्यूँ कोई मुझको याद करे
मसरूफ़ ज़माना मेरे लिये
क्यूँ वक़्त अपना बरबाद करे
मैं पल दो पल का शायर हूँ
पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है
पल दो पल मेरी जवानी है
तुम बीज के मानिंद
भीतर तक गढ़ जाओ
सहर्ष पृथ्वी में...
अंततोगत्वा तुम प्रस्फुटित होवेगे
और छा जाओगे विशाल वटवृक्ष सा...
सदैव स्मरण रक्खो,
जो धरती से जुड़े हैं
उनका अनन्त तक विस्तार है
~ शिव
#शिवआफ़्ताब
मैं भला लाख कोशिशें करूँ
मेरे भीतर अंतस्थ का
दर-ओ-दीवार संजोया
एक कोना दरक गया है
यहाँ पल छिन्न दरारों में
उदासी की पपड़ी झरती है...
और इसी कोने पे
कभी नहीं पहुंच पाता
न मेरी हँसी का हाथ
न भाषा का झाडू
जहाँ अक्सर, रोज़ाना ही
मकड़जाल बुनते हैं
तुम्हारी स्मृतियों के कणे...💘
~ शिव
"ये पृथ्वी सिर्फ़ दो तरह के लोगों का निवास स्थान हैं... पहले जो संघर्ष के मैदान में अजेय योद्धा हैं, घुटनों के बल आके भी सर नहीं झुकाते और दूसरे वो जिनके हृदय प्रेम-प्रतिज्ञा में शाश्वत अटल हैं, बिना तितिक्षा की घड़ियों की गणना किए"
~ शिव
#शिवआफ़्ताब
@GadyaKriti
@goonjabhivyakti
मैं व्युत्क्रमानुपाती हूँ,
तुम्हारी बीजगणितीय समीकरण में...
संभवतः मेरा मान जितना कम हुआ
उतना ही तुम्हारा मान बढ़ता गया...
और अंततः सबहु बराबर निकला,
मैं सदैव कमतर होके भी संपूर्ण एकात्मक हूँ....
(सचमुच, प्रेम व्युत्क्रमानुपाती समुच्चय है, जहाँ प्रेमी-प्रियतम पूरक हैं!
~ शिव
प्रेम क्षमादान की परिधि में खेलता हुआ शैशव है... जिस क्षण, तुम इसकी अट्ठखेलियाँ करते हुए, बेतरतीब तरीके से... तुम्हारी आत्मा के गालों पे नख की खरोंचे, बेरहमी के साथ उकेरी चोटों में उठती जलन को भुला के... संपूर्णतः मुस्कुरा के न्योछावर हो जाओ...और पुचकारने को अंक में उठा लो❤
~शिव
ओ वसन्त सी लड़की!
की तुम्हारे प्रेम-सौंदर्य की अनुभूति है।
जैसे पहाड़ी जोत पे कलकल बहता हुआ निर्झर
जिसके नीर की अमल धवलता है पावन-पुनीत
मानो ये छैल-बांका वारी है- तुम्हारे झुमके का सहोदर
@Rekhta
मुद्दतों हुई है धूप-छाँव के मेले में जिंदगी बसर करते
परदेश में तुम्हारी लोरी का चाँद भी कहाँ दिखता है माँ धुंध के ग़ुबार में
काश! तुम वो ही चंचल माँ होती, कदंब के पेड़ की ड़ाल होती
और तुम्हारे आँचल में,मैं बचपन का लुकाछिपी का खेल खेलता नन्हा बालक
#आफ़ताब #शिवमणि #शिवआफ़ताब #शिव
तुम्हेँ देवव्रत के तीरों में ज़ख़्मी हंस का
धरती पे आके गिरना महज़ हादसा था
और हमें नल-दमयन्ती का प्रणय निवेदन संजोए
हंस की आँखों का सारांश, अनन्त प्रेम का संयोग...
~ शिव
#शिवआफ़्ताब
मेरी आज संपूर्ण कविताएँ, पँक्तियाँ
खण्ड खण्ड हैं,व्यथित हैं,शापित हैं-
ओ मेरी भाषा! मैं शर्मशार हूँ, लज्जित हूँ
क्योंकि मैं धरती पे अभिशप्तता का पर्याय हूँ
सुनो! पुरुष तत्व की हुंकार भरने वालों!
तुम सदैव प्रकृति के ऋणी रहोगे,
जननी का तिरस्कार करने वालो!
तुम सबहु पे सौ लानतें🖤
.........
दु:ख कितने सतत् विकास की प्रक्रियाओं के साक्ष्य हैं, साक्षी हैं.....इस बात को संसार में वही हृदय जान पाएगा.... जिसने राजकुमार सिद्धार्थ का गृहत्याग और महात्मा बुद्ध का महापरिनिर्वाण जाना है..... अथवा वो, जिसने राजकुमारी यशोधरा के विरह की असीम पीड़ा महसूस की......
~ शिव
@ParveenKaswan
Don't worry Sir... Through which speed humanity is behaving with nature... In near future... Human being would be the endangered species... And this is not the prediction but the sad and bitter truth... Now it's only
#COVID19
but there would thousands of Tsunami waiting us...😢💔
@The_saarang
हाए! जब माघ स्याल की खुश्क रुत्त में,शीत लहर में कंपकंपाती, ठिठुरती जाड़े की रातों में...सहसा जब तुम्हारी गर्म हथेली संजो लूंगा...तब नील कुमुदिनी सी आँखों में, प्रेम का अलाव दहकता होवेगा और बर्फ़ीली हवाओं में, हम दोनों एक ही पश्मीना शॉल में सिमटे, मधुरात में ज़िन्दगी जी जाएंगे❤
"सुनो! ये मदहोश करती सांझ तुम्हारी धानी चुनर का विस्तार है...तुम्हारी फुलकारी पे गुंथी सूर्ख़ गोटेदार झाल्लर की रंगत है गोया ये शाम का हसीं रंग-ओ-हुस्न...ऐ प्रेयसी! इसी ओढ़नी के साए में शब-ए-फ़िराक़ जवां होती है...सचमुच! कितना अनन्त है तुम्हारा आँचल"
~तुम्हारा शिवमणि
#शिवआफ़्ताब
अनन्त को साधना उन्हीँ सूरमाओं का लक्ष्य होता है, जो समझते हैं कि ये आकाश पृथ्वी की पाल है; जो नाविक, इसे दुरुस्त रखने का हुनर रखता है, वो कोलम्बस का सहोदर है, नील आर्मस्ट्रांग का साथी...सदैव स्मृतियों में इंगित रक्खो कि असंभव शब्द शब्दकोश में है, अंत:करण में नहीं
~शिव
#शिवआफ़्ताब
हे ईश्वर! मुझे भाषा के अंक में शरण दो, ताकि मेरी पँक्तियों के गुलाब शाश्वत महकते रहें... ऐ अहल-ए-दुनिया! मेरी रुख़्सती पे आँसू मत बहाना... मैं गुलफ़ाम हूँ, अहल-ए-बाग का... मेरी तुर्बत पे तुम्हारे दामन में मोहब्बत के फूल झरेगें... मेरा कवित्व, बशर के क़ल्ब-ओ-रूह में पवित्र माटी है
सुनो! जब संपूर्ण ब्रह्माण्ड की उपमाएँ, प्रतिबिंब निरर्थक होवेंगे... तब खेतों की मेंढ पे बैठे, कूल के नीर का बहाव मोड़ के.... पृथ्वी पे, माटी का गारा बनाऊँगा.... और मटमैले हाथों की स्फूर्ति में, नन्हा सा घर बनाऊँगा.... जिसमें मेरी ऊँगलियों के पोरों की छवि होवेगी❤
~तुम्हारा शिवमणि
मधुर गुँजन!❤❤❤
तुम स्वयं में संपूर्ण ब्रह्माण्ड हो, जिसकी शाश्वत सत्ता की अधिष्ठात्री देवी हो- "तुम"...तुम्हीं पूर्णब्रह्म, पूर्ण सत्य हो....तुम्हेँ लिप्यन्तरण में संजोना एकमात्र मेरी भूल है, भाषा का छल है... तुम बारहखड़ी की स्वर ध्वनियों से विमुक्त शाश्वत ओंकार का सृजन हो🌼
अनायास,इक दिन
मैं टूटकर बिखर जाऊँगा
न्याग्रा जलप्रपात की भांति...
दुर्लभ, विस्मृत खंडहर होके
शेष स्मृति-स्मारक होऊँगा
बेबीलोन के झूलते उपवन सा,
किसी पुरात्तव संग्रहालय में
हडप्पा सभ्यता के अवशेष में
अपठनीय शिलालेख सा...
मगर अंतिम समय तक
भाषा मेरी रहबर होवेगी
कविता-संगिनी!
~शिव
अगर तुम में माटी में गढ़ने का धैर्य होवेगा, तभी संभव है कि तुम पृथ्वी पे बीज की भांति फलने-फूलने का सौभाग्य पा सको; जीवन में वही नमी के हक़दार बनते हैं, जिनकी जड़ें भीतर गहराई तक अंधियारे में विस्तृत हैं...
~ शिव
तुम्हारा अनन्त प्रेम, दूब की भाँति पृथ्वी पे व्यापक है.... और मैं आफ़ताब पूरब में अंगड़ाई भरता, ओस बूँदों में प्रतिबिंबित हुआ.... सतरंगी यौवनारंभ की पगडंडी पे नित सैर करता हूँ.... ❤😍☺
अच्छा, सुनो न! तुम्हारे प्रेम-सौंदर्य में संलिप्त, मेरे जीवन तईं प्रेमी होने की परिणति है- संपूर्ण पृथ्वी के प्रति अगाध, अनन्त करुणा औ' प्रेम की प्राप्ति, शाश्वत कृतज्ञता का भाव... ❤🌼🥰
तुम मुझे क्या ढूँढने का दम भरोगे?
मैं गढ़ा हूँ- पृथ्वी की कोख में
संभवतः इतनी असीम गहराई में
कि परतों को अनंतता में सीमित करना
मेरी जात की तौहीन होवेगी...
मैं एकेश्वरवाद का गूढ़ हूँ
जहाँ अज्ञेय का पहरा है
सचमुच, ईश्वरत्व से परे का मंत्र हूँ
भाषा-लिप्यन्तरण से विमुक्त हूँ!
~शिव