कंधे पर एक "थैला", दो जोडी "वस्त्र", कार्यकर्ता की "साइकिल" से एक गांव से दूसरे गांव घूमता, रात्री डेरा "संघ कार्यालय", "स्वंयंसेवक" के घर जाकर सादा "भोजन" खाना, लेकिन दिल में "माँ भारती" को उच्चतम कीर्ति दिलाने की धुन लेकर यह "साधु" आज भी दिन रात "मेहनत" कर रहा है।