ध्यान आत्मा का स्नान है। प्रथम कार्यक्रम ध्यान योग में ही ओंकार का ज्ञान। अनचाहे विचार, चिंता और नकारात्मक भावों से मुक्त होकर आनन्द और उमंग भरी ज़िन्दगी जियें।
कार्यक्रम:
ऑनलाइन: 11-19 को प्रत्येक माह
ऑफलाइन: त्रिदिवसीय प्रत्येक माह
संपर्क करें:
ओशोधारा नानक धाम, मुरथल, हरियाणा
प्रतिकूल समाचार, निन्दा , आलोचना पढ़ या सुन कर उत्तेजित न हों , सहज रहें ।आसुरी शक्तियां शुरू में प्रबल होती दिखाई देती हैं , मगर अन्ततः देवीय शक्तियां ही जीतती हैं। तमाम असन्गतियो के बावजूद गोविन्द अस्तित्व को मंगलमय दिशा में ले जाने के लिए कृतसन्कल्प है।
1008 ग़ज़ल लिखने का संकल्प आज पूरा हुआ। सफ़र बड़ा लम्बा, लेकिन मज़ेदार रहा। आज की ग़ज़ल की चंद पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं:
हो गई पूरी अब ग़ज़ल मेरी
हुई संकल्पना सफल मेरी
काम आसां नहीं था रब ने मगर
राह कर दी बहुत सरल मेरी
बात होगी जो कभी ‘मुर्शिद’ की
याद दुनिया करेगी कल मेरी
गुरु हमें हर तरह से परखता है और अपने अनुभव हमें बिना किसी भेदभाव के देता है। लेकिन साधक कई बार अपने लाभ के लिए गुरु से विमुख हो जाता है । लेकिन वह यह भूल जाता है कि जिस गुरु ने इतना कुछ अब तक दिया है, वह आगे भी बहुत कुछ दे सकता है।
जब बंद द्वार इक होता है,
कुछ नए द्वार हैं खुल जाते।
कुछ फूल पुराने झड़ते हैं,
कुछ नए फूल हैं खिल जाते।
परिवर्तन नियम जिंदगी का,
खुश रहना नियम बंदगी का।
आनन्दं शरणम् गच्छामि,
भज #ओशो शरणम् गच्छामि।
जब #ओशो कहते हैं कि तुम हमारे मित्र हो, तो यह उनकी महानता है, बड़प्पन है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि हम भी उनकी बराबरी करने लगें। जैसे हिमालय केवल पर्वत नहीं है। गंगा केवल नदी नहीं है। वैसे ही ओशो हमारे लिए केवल मित्र नहीं, कल्याण मित्र हैं, वन्दनीय हैं, पूजनीय हैं।
#गुरुद्रोह से बड़ा पाप कुछ भी नहीं है। गुरु से नहीं जुड़ो , कोई बात नहीं। पर जुड़ कर दुर्भावना रखो या द्रोह करो, यह अक्षम्य अपराध है। गुरु भले इसे क्षमा कर दे, परमात्मा क्षमा नहीं करता।
My best wishes to all friends and seekers on this auspicious occasion of my 76th birthday. It is not possible to reply individually to those who have sought blessings through WhatsApp or text. My love and blessings to all.
By launching 28 levels of Spiritual & 26 Happy living online programs at global level, Oshodhara has paved the way for the greatest spiritual movement in the history of mankind for journey to
#Enlightenment
and beyond. Open this link to know the details.
Shailendraji has decided to take a break for 2 months with effect from 14th September,19 for going to our Nepal Ashram for sadhna, which I have agreed. I respect his freedom. You should also do the same. Any rumour in this regard is uncalled for.
आज परमगुरू का सम्बोधि दिवस है. इस दिन एक दीपक प्रकशित हुआ.उस प्रकाश पुंज से लाखों बुझे दीपक जल उठे.धन्यभागी हैं जो ओशो युग में पैदा हुए.मेरे लेखे तो भगवान कृष्ण के बाद ओशो ने ही मनुष्य जाति को जीवन जीने के सभी आयामों से परिचित कराया. आप सभी को सम्बोधि दिवस की बधाई।
जो दिखता है, ज़रूरी नहीं कि वह सच हो। रूठने या टूटने वाले की कुछ शर्तें होती हैं, जो अधिकतर धन या सम्पत्ति से सम्बंधित होती हैं। ज़रूरी नहीं कि उसकी हर माँग उचित हो या तुम पूरी कर सको। हर व्यक्ति या संघ की सीमा होती है। कठिनाई तब होती है, जब किसी की माँग करोड़ों में हो।
जैसे-जैसे #ओशोधारा के विरोधियों का स्वर मुखर होता जा रहा है, वैसे-वैसे मुझे उनकी नादानी पर दया आ रही है। उनका कोई दोष नहीं है। न तो उन्हें परमात्मा का कोई अनुभव है, न आत्मा का और न ही सृष्टि की संचालक दिव्य शक्तियों का, इसलिए वे दूसरों के अनुभवों पर भरोसा करें भी, तो कैसे?
परमात्मा कभी तुमसे यह कहता ही नहीँ कि तुम क्या करो और क्या न करो। करने की पूरी स्वतंत्रता है। लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि हर कृत्य का परिणाम है। उसको भोगने के लिये भी तुम राजी रहना। कृत्य की स्वतंत्रता है, परिणाम का बँधन है ।
#ओशोधारा:
बुद्ध के जमाने में बुद्ध के संघ में शामिल होना जितनी बड़ी धन्यता थी, आज उससे भी बड़ी धन्यता ओशोधारा संघ में शामिल होना है। बुद्ध का संघ जीवन के निषेध पर खड़ा था, जबकि ओशोधारा संघ कर्मयोग और जीवन के परम स्वीकार पर आधारित है। इस महान संघ में नए साधकों का स्वागत!
तनावमुक्त जीवन के स्वर्णिम सूत्र :
(1)जीवन का आधार चुनोैती है, इसलिए चुनोैती को स्वीकार करें।
(2)' ना ' सुनने की आदत डालें।
(3)पहल करें।
(4)अहोभाव में जिएँ।
(5)मीठी वाणी बोलें।
(6)संकल्प लें।
(7)प्रतिकूल का स्वीकार करें।
(8)आत्म बोध के साथ जिएँ।
—ओशो सिद्धार्थ औलिया
भारत में कश्मीर के पूर्ण विलयन की इस ऐतिहासिक घड़ी के हम सौभाग्यशाली साक्षी हैं। मैं
@narendramodi
सरकार को अपना समर्थन और बधाई देता हूँ। JDU और कुछ अन्य विरोधी दलों द्वारा इसका विरोध आत्मघाती है।परमात्मा उनको सदबुद्धि दे।
ओशो संध्या आजतक इतनी ख़ूबसूरत कभी नहीं हुई। साँस साँस सुमिरन में जी रहे निराहारी आचार्यश्री ओशो चेतन का यह कीर्तन नृत्य ओशोधारा में पतझड़ के बाद एक नए बसंत का आरम्भ है।
गुरू हमारी सीमा नहीं है, हमारी सम्भावना है। वह हमारी मंज़िल नहीं, मील का पत्थर है। गुरु हमारा उद्गम है, हमारा अंत नहीं। गुरु का शब्द संकेत है, बंधन नहीं। गुरू की वाणी सत्य की सुगंध है, सिद्धांत नहीं। वह हमारी गंगोत्री है, गंगा सागर नहीं।
आज से 21 वर्ष पूर्व ओशोधारा की प्रथम ओंकार दीक्षा अमरकण्टक में 5 अप्रील, 1998 को सम्पन्न हुई, जिसमें 21 सहभागियों ने भाग लिया था। इस पुनीत अवसर पर आप सभी को अनंत शुभकामनाएँ!
रात बीती प्रात अब आने को है
सांझ आई सूर्य ढल जाने को है
जब भी आए कोई घाटी राह में
जानना कोई शिखर आने को है
तप रही हो जब भी धरती धूप से
मेघ कोई नीर , बरसाने को है
~ गुलशन-ए-मुर्शिद
ओशोधारा के आचार्यों को ओशोधारा के मंच से प्रचार करने की छूट है, दुष्प्रचार या आत्मप्रचार की नहीं। संवाद की छूट है, विवाद की नहीं। उपदेश की छूट है, प्रपंच की नहीं। गुरू-शिष्य परम्परा के मंडन की छूट है, खंडन की नहीं।ओशो की वंदना की छूट है, कट्टरता की नहीं।
#OshoDharmChakra
:
Flood is over. Of course it has done significant damage. But now we have to reconstruct Oshodhara to greater heights. We have to take it to new horizons. We have to scale new peaks. We have to take cycle of dharma chakra initiated by Osho beyond barrier of time.
ओशोधारा दिवस पर आप सभी को अनंत शुभकामनाएँ। प्रभु से मेरी प्रार्थना है कि आप सभी के भीतर का संबोधि कमल यथाशीघ्र खिले और सभी दिशाएँ उसकी सुरभि से भर जाएँ।
तेरे इल्म से है बका मेरी
तेरे इल्म से में फना हुआ✨
तेरे इल्म से मेरा इश्क़ है
तेरे इल्म से मैं खुदा हुआ
मुझे हर जवाब है मिल गया
कोई बचा ना सवाल है
या नबी ये तेरा कमाल है
हासिल ख़ुदा का जमाल है।
#अध्यात्म उन लोगों के लिए नहीं, जो अपने नियमित कार्यक्रम में व्यस्त व संतुष्ट हैं। यह तो जीवन का अर्थ जानने के इच्छुक साधकों का मार्ग है। यह मानसिक खुजली नहीं, आत्मिक खोज है।मनोरंजन नहीं, मनोभंजन है। यह विद्वता नहीं, श्रद्धा का मार्ग है।कट्टरता नहीं, क्रांति का मार्ग है।
"स्वामी देवतीर्थ भारती जी के महापरिनिर्वाण दिवस, 8 सितंबर पर उन्हें शत शत नमन"। सितंबर 1979 को दद्दाजी (ओशो के पिताश्री) ने देह त्यागी थी और इसी 8 सितंबर के दिन को ओशो ने "महापरिनिर्वाण" दिवस घोषित कर दिया।
गुरु से प्रीति होने लगे समझना गुरु-कृपा हुई और गोविंद से प्रीति बढ़ने लगे, समझना गोविन्द की कृपा हुई । गुरु से प्रेम बढ़ने का एक ही तरीका मैं बता सकता हूँ । सोचो कि गुरु से जुड़ने के पहले तुम्हारी जिंदगी क्या थी ? और गुरु से जुड़ने के बाद तुम्हारी जिंदगी क्या है ?
परमात्मा देने को तैयारहै।अमृत देने को तैयार है।कंजूसी मत करना!बाल्टीभर-भर के ले जाना,टब भर-भर के ले जाना।गिलास लेकर यहां मत आना।जितना उठा सको,उतना भर-भर के लेजाना।बड़े सौभाग्य की घड़ी हैऔर बहुत ही अद्भुत घड़ी है।
प्रेम एक नशा है। जिसे हम प्रेम करते हैं, उसको देखना मस्ती में ले जाता है। यही प्रेम गोविंद से हो, तो उस नशे का क्या कहना।
आकार में दुख है, निराकार में शांति है, और सुमिरन में आनंद है। सदा सुमिरन में रहें।
-सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया
किसी भी अभियान की सफलता के तीन चरण हैं-उपेक्षा, विरोध, सहयोग। ओशोधारा के इस विराट धर्म चक्र का दूसरा चरण आरम्भ हो गया है। कट्टरपंथियों का विरोध शुरू हो गया है। यह शुभ संकेत है। भगवान कृष्ण और ओशो के बताए सहज योग के मार्ग पर हमें संकल्प पूर्वक आगे बढ़ते जाना है। जय ओशोधारा!
ओशो के वृक्ष को वीरान करने का कट्टर पंथियों का प्रयास अविवेक पूर्ण है। उनके लिए इतना ही कहना चाहूँगा:
‘न इतनी तेज़ बहे सरफिरी हवा से कहो;
शजर पे एक ही पत्ता दिखाई देता है।’
उसी पत्ते का नाम है ओशोधारा!
#ओशोधारा एक गुरु शिष्य परम्परा है। यह ओशो से मैत्री का दावा करने वालों का कोई क्लब नहीं है।यह ध्यान, साक्षी, समाधि और सुमिरन का मानसरोवर है। ओशोधारा में आचार्य हों या साधक, सभी एक ही जीवित सद्गुरू के शिष्य हैं। यदि कोई अन्यथा समझता है, तो उसे अपना एक अलग ओशो क्लब खोल लेना चाहिये।
गुरु जब अंहकार की परतें उतारता है, तो दर्द होता है। गुरु पर गुस्सा भी आता है।मगर जब भीतर अपने ही अमृत, राम रस से सामना होता है, तो गुरु की करुणा समझ आती है।गुरु से प्रेम हो जाता है। प्रेम श्रद्धा में बदल जाता है।अंहकार से मुक्ति चाहते हो, तो गुरु की तलाश करो।
तनावमुक्त जीवन के स्वर्णिम सूत्र :
(1)जीवन का आधार चुनोैती है, इसलिए चुनोैती को स्वीकार करें।
(2)' ना ' सुनने की आदत डालें।
(3)पहल करें।
(4)अहोभाव में जिएँ।
(5)मीठी वाणी बोलें।
(6)संकल्प लें।
(7)प्रतिकूल का स्वीकार करें।
(8)आत्म बोध के साथ जिएँ।
ख़ुदा की याद में रहने वाले
कम हैं खुद को फ़ना करने वाले
नबी की बात समझते कितने
हम भला कौन हैं कहने वाले
मेरी मासूमियत पे मत जाना
हम नहीं राह से हटने वाले
सबको मिलता नहीं कामिल 'मुर्शिद'
यूँ भी कुछ ही हैं खोजने वाले
-सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया
जब ओशो विदा ह��ए; ओशो के सारे लोगों ने कहा कि अब गुरु की जरुरत नहीं। लेकिन #ओशोधारा ने कहा कि गुरु की जरुरत है। तो छोटा-मोटा विरोध तो चलता रहेगा।
" अब हवाएं ही करेंगी रौशनी का फैसला,
जिस दिये में जान है वो दिया रह जायेगा।"
आती-जाती सांस से सुमिरन करूं मै
मिलन की इस मौज में हरदम रहूं मैं
दो तटों से जिन्दगी बहती है रहती
हो कभी प्रतिकूल तो धीरज धरूं मै
संतुलन के नियम से चलती है सृष्टि
रब है मंगलमय सदा फिर क्यों डरूं मैं
जलवा-ए-मुर्शिद
आप सभी को #लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएँ। आज की रात 13 जनवरी, 1997 को गुरु नानक देव की दिव्य सत्ता ने मुझे ॐ की दीक्षा दी। तब से लोहड़ी का पर्व मेरे लिए और ओशोधारा के लिए ‘लो हरि’ बन गया।’लो हरि’ आप सभी को मुबारक हो!
बंदा बंदा नहीं जो करता आदाब नहीं
कोई जुगनू कभी हो सकता आफ़ताब नहीं
बात बनती है किसी पीर या कलदंर से
चाहिए हमको ख़लीफा या वहाब नहीं
कोई मरदाना गीत गाता कैसे रब का
कोई नानक उसे देता अगर रकांब नहीं
जलवा-ए-मुर्शिद
मैं गोविन्द का चहेता हूं
कोई दुश्मन भला करेगा क्या
नाख़ुदा हूं मैं इस ज़माने का
मुझसे कोई भला बचेगा क्या
जिनके सर पर ख़ुदा का हाथ सदा
ऐसा बंदा कोई डरेगा क्या
#औलिया कह नवाजा मुर्शिद ने
और कोई मुझको समझेगा क्या
फ़िरदौस-ए-मुर्शिद
जगत को जो तुम देते हो, जगत हजार गुना कर तुमको लौटा देता है । तुम घृणा दो - घृणा लौटेगी । तुम प्रेम दो- प्रेम लौटेगा । तुम अपमान दो - हजार अपमान तुम्हारा इन्तजार करेगा।ये प्रतिध्वनि की तरह है।
क्या नहीं जानते तुम अब तक , नासमझों से यह जग है भरा ?
सालों लगता कुछ बनने में, क्षण भर में कर देते कचरा ।
अब हँसो नहीं तो करोगे क्या , पागल है इनका करोगे क्या ?
अथ हास्यं शरणं गच्छामि , भज #ओशो शरणं गच्छामि । ।
आनन्द - गीता
#गुरुद्रोह से बड़ा पाप कुछ भी नहीं है। गुरु से नहीं जुड़ो , कोई बात नहीं। पर जुड़ कर दुर्भावना रखो या द्रोह करो, यह अक्षम्य अपराध है। गुरु भले इसे क्षमा कर दे, परमात्मा क्षमा नहीं करता।
नाम श्रवण के साथ जगत के सारे कार्य करो। यह अभी और यहीं में जीने का श्रेष्ठतम तरीका है। इससे जीवन में उमंग बनी रहती है, उदासी नहीं आती। तुम आनंदित रहते हो।
कहीं राधे-राधे चल रहा है। कहीं गीता रटने को कहा जा रहा है। कहीं आत्मा मानकर जीने को कहा जा रहा है। कहीं नाम के नाम पर मंत्र दिया जा रहा है। ऐसे में " चरैवेति " तक की साधना के लिए 28 तल के कार्यक्रमों के साथ ओशोधारा का आना क्या चमत्कार नहीं है !!!
वैलेंटायन डे अर्थात् प्रेम दिवस आप सभी को मुबारक हो।
प्रेम प्रेम सब कोई कहे, प्रेम न जाने कोय।
गुरु मिले, गोविंद मिले, प्रेम कहावे सोय।।
—ओशो सिद्धार्थ औलिया
सत्य के साथ शील भी होना चाहिए, शौर्य के साथ धैर्य भी होना चाहिए और कर्मयोग के साथ ईश्वर पर पूरा भरोसा भी होना चाहिए, फिर तुम्हारे विजय रथ को कोई भी नहीं रोक सकता। विपरीत परिस्थितियों में भी साक्षी रहकर संघर्ष करना ओशोधारा का कर्मयोग का मार्ग है।
जीवित गुरु के पास रहोगे तो तुम्हारी यात्रा के लिए आगे की विधियाँ देता रहेगा।जीवित गुरु जानता है कि तुम्हें कहां आगे बढ़ाना है ,कैसे आगे बढ़ाना है ।जीवित गुरु के साथ चलते रहो, चलते रहो...जीवित गुरु हमेशा नया होता है , विधियाँ पुरानी पड़ जाती हैं ।
हो सकता है दस आलोचना में दो-चार आलोचना ऐसी भी हों, जिसमें सच्चाई हो,और उसके अनुसार अपने में सुधार लाओ, क्योंकि अपना अवगुण दूसरों को पता चलता है,अपने पता नहीं चलता है।
अब दिलों में फ़ासलों की बात मत कर
सफ़र में मंजिल से पहले रात मत कर।
मैक़दे में जाम रिंदों को पिलाओ
घर न लौटें ऐसी भी बरसात मत कर।
प्रेम में जो हारता वो जीतता है
इश्क़ जिससे है उसे तू मात मत कर।
रब की हर रचना बहुत सुंदर है लेकिन
ख़ुदा से बढ़कर कभी कायनात मत कर।
ओशो अमृत दिवस आप सभी के लिए मंगलमय हो!
नहीं मायूस हो इतना
मसीहा की विदाई से
कहीं तो फिर चलेगा सिलसिला
फिर मैकदा होगी
चुना खुद रब ने है ‘सिद्धार्थ’ को
रहबर जमाने का
नहीं #ओशो के मयखाने से
रौनक अब विदा होगी
गुरु भक्ति का अर्थ है गुरु के प्रति अहोभाव में जीना।कभी अहोभाव में कमी आए, तो चिंतन करना कि गुरु से जुड़ने से पहले तुम्हारी जिंदगी क्या थी ? गुरु से जुड़ने के बाद तुम्हारी जिंदगी क्या है, और अभी और क्या संभावना है।
—सिद्धार्थ उपनिषद
तूफान ऐसा आया, बरसात हुई भारी
कुछ पेड़ गिर गए हैं, अब उनका क्या करें हम !
कल तक जो यार मेरे लगते थे इतने प्यारे
वे दर्द दे रहे हैं अब उनका क्या करें हम !
सिद्धार्थ रास्ते में मत पीछे मुड़ के देखो
हैं बेवफ़ा हुए जो अब उनका क्या करें हम!
-सद्गुरू ओशो सिद्धार्थ औलिया
जब ओशो विदा हुए; ओशो के सारे लोगों ने कहा कि अब गुरु की जरुरत नहीं। लेकिन #ओशोधारा ने कहा कि गुरु की जरुरत है। तो छोटा-मोटा विरोध तो चलता रहेगा।
" अब हवाएं ही करेंगी रौशनी का फैसला,
जिस दिये में जान है वो दिया रह जायेगा।"
मेरी समाधि पर लिखना, वह सो रहा यहां जो जाग गया;
जिसने इतना था #प्रेम किया, हरि आकर स्वयं सराह गया।
जाते-जाते कह गया वचन, है नहीं प्रेम से बड़ा भजन;
अथ #प्रेमं शरणम् गच्छामि, भज #ओशो शरणम् गच्छामि।।
-आनंद गीता
प्रभु के मार्ग पर हजारों लोग चलते हैं, लेकिन कुछ ही संबोधि की मंजिल तक पहुंचते हैं।
इसलिए नहीं कि रास्ता कठिन है, बल्कि इसलिए शेष क्षुद्र बातों में उलझकर रास्ते में ही
रुक जाते हैं।
आत्मस्मरण जीवन है। आत्मविस्मरण मृत्यु है।
सद्गुसभी को आमंत्रित करता हूँ। और जो चल रहे हैं
उनके लिए कहता हूँ कि रुकना नहीं, थोड़ी देर
भी रुकना नहीं। तुम्हें पता नहीं है-
" थोड़ी देर रुक जाने से दूर हो जाती है म़ंजिल,
सिर्फ हम ही नहीं चलते, रास्ते भी चलते हैं। "
क्या तुम्हे अतृप्ति का एहसास होता है ? क्या जाने-अनजाने कुछ तुम 'मिस'करते हो ? इसका मतलब तुम परमात्मा से अभी दूर हो।और उसका एक ही तरीका है-सुमिरन..तुम तृप्त ही नहीं,बल्कि निहाल हो जाओगे.सुनो,गुरु अर्जुनदेव क्या कहते हैं--'सिमर सिमर सिमर नाम जीवा,तन मन होय निहाला।’
प्रभु मिलन की आस ज़िन्दा कर रही
आती-जाती सांस सजदा कर रही
जब अंधेरा घेरता उम्मीद पर
रोशनी तब-तब सबेरा कर रही
दीप की लौ टिमटिमाती जब कभी
तेल बन श्रध्दा उजाला कर रही
धूप तीखी जब तपाती है मुझे
भक्ति की बदरी छाया कर रही
जलवा-ए-मुर्शिद
सिद्धार्थ उपनिषद् :
संसार बहती हुई नदी है, परिवर्तनशील है। परमात्मा ठहरा हुआ सागर है, शाश्वत है। साक्षी होकर दोनों का मजा लेना संतत्व है। जैसे सागर नदी के जल का स्रोत भी है, और गंतव्य भी, वैसे ही परमात्मा संसार का उद्गम भी है, और गंतव्य भी।
#ओशोधारा:
बुद्ध के जमाने में बुद्ध के संघ में शामिल होना जितनी बड़ी धन्यता थी, आज उससे भी बड़ी धन्यता ओशोधारा संघ में शामिल होना है। बुद्ध का संघ जीवन के निषेध पर खड़ा था, जबकि ओशोधारा संघ कर्मयोग और जीवन के परम स्वीकार पर आधारित है। इस महान संघ में नए साधकों का स्वागत!
आज 16 अप्रैल,19 को #क़ुरान के हिन्दी पद्यांतर का शुभारम्भ हुआ। आयतों की बरसात में भीग रहा हूँ। एक तरफ़ #गीता की गंगा, दूसरी तरफ़ क़ुरान की यमुना और मध्य में मेरी प्रज्ञा की सरस्वती एक ऐसे प्रयाग का निर्माण करने जा रही है, जिसके संगम में कल पूरी मानवता आत्मस्नान का मज़ा लेगी।
परमात्मा कभी तुमसे यह कहता ही नहीँ कि तुम क्या करो और क्या न करो। करने की पूरी स्वतंत्रता है। लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि हर कृत्य का परिणाम है। उसको भोगने के लिये भी तुम राजी रहना। कृत्य की स्वतंत्रता है, परिणाम का बँधन है ।
ऐसा समझ लो हम लोग नाव से किसी द्वीप में गए हैं, और नाव तोड़ दी गई है।उस द्वीप से वापस आने की कोई संभावना नहीं है।अब उस द्वीप पर रहना ही रहना है। इसलिए जो बुद्ध वाली नाव थी, महावीर वाली नाव थी, शंकराचार्य की नाव थी, वो तोड़ दी गई है।
करोना का संकट अधिक से अधिक तीन-चार माह का है। चीन मुक्त हुआ। भारत और शेष विश्व भी मुक्त होगा। सृष्टि का आधार चुनौती है। परमात्मा को मंगलमय जानते हुए इस चुनौती का साहसपूर्वक मुक़ाबला करें। परिणाम शुभ होगा। शाकाहार और सत्धर्म की स्थापना होगी।
@narendramodi
के नेतृत्व में भरोसा रखें।
गुरू हमारी सीमा नहीं है, हमारी सम्भावना है। वह हमारी मंज़िल नहीं, मील का पत्थर है। गुरु हमारा उद्गम है, हमारी यात्रा नहीं। गुरु का शब्द संकेत है, बंधन नहीं। गुरू की वाणी सत्य की सुगंध है, सिद्धांत नहीं। लेकिन कट्टरपंथी इसे नहीं समझेंगे। वे दया के पात्र हैं।
जब लगे अब बात, बन सकती नहीं
थोड़े दिन ही अब , खुदा पाने में है
चलते-चलते थक कभी जाओ अगर
जानना मंजिल करीब आने को है
इबादत में मन नहीं लगता अगर
भेद मुर्शिद नया बतलाने को है
~ गुलशन-ए-मुर्शिद
तुम क्षमा करो पागल जग को,
सब अपने मन से परेशान।
कोई न किसी की सुनता है,
सब कहत�� अपना दुख पुराण।
वैसे भी क्या समझाना है,
सब भीतर खोज, खजाना है।
आत्मानं शरणं गच्छामि,
भज #ओशो शरणं गच्छामि।।
कितने ऋषियों, मुनियों ने
शाश्वत प्रश्नों का उत्तर खोजा।
पर ईश्वर क्या है, जीवन क्या है,
प्रश्न अभी तक अनबूझा।
हो गई कृपा गुरु की जिस पर,
उसने ही जाना क्या ईश्वर?
गुरु चरणं शरणं गच्छामि,
भज ओशो शरणं गच्छामि।।
गोविंद भजो :
तुम योग करो या भोग करो,
जंगल या घर में वास करो,
इन बातों का कुछ अर्थ नहीं,
सार्थक है प्रभु का ध्यान करो;
अब घर-जंगल का भेद तजो,
गोविंद भजो, गोविंद भजो।
-सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ औलिया