मुसलमान सब कुछ तो बर्दाश्त कर सकता है लेकिन अपने नबी की शान में ज़र्रा बराबर भी बे अदबी और गुस्ताखी नहीं बर्दाश्त कर सकता।
#Stopinsulting_prophetMuhammad
ﷺ
मुसलमान सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है लेकिन अपने नबी की शान में ज़र्रा बराबर भी बे अदबी और गुस्ताखी नहीं बर्दाश्त कर सकता।
#Stopinsulting_prophetMuhammad
ﷺ
पैगंबर मुहम्मद ﷺ की शख्सियत मुसलमानों के लिए जान से भी ज्यादा प्यारी है, मुसलमान किसी भी कीमत पर हजरत मुहम्मद ﷺ की शान मे गुस्ताखी बर्दाश्त नही करेगा,BJP की नफरती प्रवक्ता नुपुर शर्मा को गिरफ्तार करो.
#ArrestNupurSharma
फिलिस्तीन की जिद्दो जेहद (संघर्ष) में आप भी अपना किरदार अदा करिए। कम से कम इतना तो हर कोई कर सकता है कि वहां पर होने वाले मजालिम का सोशल मीडिया पर ज़िक्र करे और पब्लिक में अवेयरनेस लाए।
करौली जैसी हिंसा के माध्यम से अगर मुस्लिम कौम को डराना चाहते हैं तो ये समझ लें कि ये कौम जब करबला, हलाकू खां के द्वारा बगदाद का पतन, स्पेन का पतन और उस्मानिया खिलाफत के टूटने से न डरी और न मरी बल्कि नई जोश और उमंग से उभरी।
आज हज़रत इमाम हसन ए मुज्तबा रदी अल्लाहु ताला अन्हु की यौम ए विलादत है।
आप मौला अली के बड़े साहब ज़ादे हैं।
आपका मजार पाक जन्नतुल बक़ीअ मदीना शरीफ़ में है।
पैगम्बर मुहम्मद ﷺ ने फरमाया:-
“अपने वालिद के साथ सबसे बड़ा नेक सुलूक यह है कि इंसान उस शख्स से भी बहुत अच्छा सुलूक करे जिस के साथ उसके वालिद का मोहब्बत का रिश्ता है।”
(सहीह मुस्लिम : 2552)
हज़रत उमर इब्न खत्ताब (रज़ि अल्लाहू अन्हु) से रिवायत है कि
❝दुआ आसमान और ज़मीन के बीच रुकी रहती है। इस में से ज़रा सी भी ऊपर नहीं जाती जब तक कि तुम अपने नबी करीम (ﷺ) पर दुरूद नहीं भेज लेते।❞
#Tirmizi
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पैगम्बर मुहम्मद ﷺ ने फरमाया:
“पहलवान वह नही है जो कुश्ती लड़ने में गालिब (जीत) हो जाए, बल्कि असल पहलवान तो वह है जो गुस्से की हालत में अपने आप पर काबू पाए, बेकाबू न हो जाए।"
(सहीह बुखारी : 6114)
आज शबे बरात है, आतिश बाज़ी, राइडिंग और दीगर फुजूल हरकतों से दूर रहकर अल्लाह की इबादत कीजिए।
बुजुर्गो के आस्ताने पर हाजरी दें और दुआ करें।
सुरह यासीन का विर्द करें।
ये दौरे आखिरत है और दौरे फितन भी। सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि अपनी और अपने खानदान के ईमान की हिफाज़त की जाए और खात्मा ईमान पर हो इसकी दुआ की जाए।
कसरत से इस्तग्फार कीजिए और नबी ए करीम पर दुरूद भेजते रहिए।
इमाम ए अहले सुन्नत का खानकाहों और सज्जादो पर ये एहसान है कि जब वहाबिया के ज़रिए इनकी अजमत और फजीलत पर हमला किया जा रहा था तब आलाहजरत की ही ज़ात ने इनका दिफा किया था।
इत्तेहाद सिर्फ सही अकीदा के लोगों के बीच हो सकता है। अगर इत्तेहाद इतना ज़रूरी होता तो इमाम हुसैन ने यज़ीद से कर लिया होता।
हां, इंतेशार से बचिए पर इत्तेहाद सिर्फ अहले सुन्नत का कीजिए।
रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
जो शख़्स मर गया और वो यक़ीन के साथ जानता था कि अल्लाह ताला के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, वो जन्नत में दाख़िल होगा।
( सहीह मुस्लिम हदीस न. 136 )